उपनिषद, सांख्य, योग: भाषा की सरलता और सौंदर्य
          हज़ारों वर्षों से भारत में आध्यात्म की धारा अनवरत बहती चली जा रही है. भारतीय मनीषियों ने जीवन के गहनतम प्रश्नों पर चिंतन किया है, और अपनी खोजों को सरलतम शब्दों में जनमानस तक पहुँचाने का प्रयास किया है.
          उपनिषद, सांख्य, योग जैसे शब्द पहले मुझे बड़े क्लिष्ट लगते थे, लेकिन इनकी जड़ों और सन्दर्भों को जानकर बड़ा अचंभा हुआ. देखें, उपनिषद=उप(पास)+नि(नीचे)+षद(बैठना). शिष्य अपने गुरु के सानिध्य में जो तत्वचर्चा करते थे वह उपनिषद बन गया. तत्वचर्चा का अर्थ है उस विषय पर आपसी संवाद करना जिससे यह समस्त जगत का निर्माण हुआ है. उपनिषद का हर एक अंग कितना महत्वपूर्ण है. उप: गुरु से ज्ञान पाने के लिए उसके पास जाइए. नि: विनम्रता. किसी से ज्ञान पाना है, तो नम्र बनिए. षद: जीवन के गहरे प्रश्नों का उत्तर जानना है, तो स्थिर, शांतचित्त बनिए.
          ऐसे ही, सांख्य शब्द संख्या से बना है. सांख्यदर्शन का केंद्रीय सिद्धांत यह है कि संपूर्ण जगत पच्चीस तत्वों से मिलकर बना है. पुरुष, प्रकृति, महत्, अहंकार, मन, पाँच तन्मात्राएँ (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध), पाँच ज्ञानेंद्रियाँ (आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा), पाँच कर्मेंद्रियाँ (हस्त, पाद, बक, गुदा, उपस्थ), पंचभूत (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश).
          योग शब्द से अर्थ है अपने चेतन तत्व (consciousness), जो कि अखिल ब्रह्मांड का स्त्रोत है, उससे जुड़ जाना. मन की वृत्तियों (mental compulsions) से मुक्त होकर विचारशून्य समाधि अवस्था को प्राप्त करना, ताकि व्यक्ति का समष्टि से योग हो सके.
          स्पष्ट है कि इस प्रकार के सुंदर, सरल, और सार्थक नाम गूढ़ और जटिल विषयों को आम लोगों तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध हुए होंगे. धन्य थे ऐसे ज्ञानीजन जिन्होंने न केवल ज्ञान को पाने के लिए अथक परिश्रम किया, बल्कि जो पाया उसे निस्वार्थ भाव से हर किसी के साथ बाँटा भी.
          इसके विपरीत, छ्द्म ज्ञानियों का एक ऐसा वर्ग भी था जिसने मनुवाद और ब्राह्मणवाद का सहारा लेकर ज्ञान को एक विशेष वर्ग तक सीमित रखना चाहा, ताकि अन्य वर्गों को इससे वंचित कर उन पर शासन किया जा सके. अपने इस षड्यंत्र को सफल बनाने के लिए जातिवाद जैसी कुरीति का चलन शुरू किया, जिसका दंश हज़ारों साल से पीड़ित वर्ग झेल रहा है.
          ज्ञानियों के ये दो समुदाय एक ही देश की उपज थे. एक ने ज्ञान को जनकल्याण के लिए, तो दूसरे ने स्वार्थ सिद्धि के लिए उपयोग किया. और दोनों की ही उद्देश्य पूर्ति का साधन भाषा थी.
          भाषा एक शक्तिशाली यंत्र है जिसका उपयोग मानव समाज के निर्माण या विध्वंस में हो सकता है. इसीलिए इसका उपयोग समझकर, संभलकर, और सुमति से करना चाहिए.